साधु और सुंदरी विशुद्ध हास्य नाटक है जिसमें चेला होता है जो भोजन के लालच में साधु बन जाता है परंतु उसे सदमार्ग पर लाने के लिए गुरु प्रेरित करते हैं लेकिन चेला अपने मूर्खतापूर्ण क्रियाकलाप और संवादों से हास्य उत्पन्न करता है इतने में एक सुंदरी आती है जिस पर चेला मोहित हो जाता है सुंदरी को यमदूत सांप बनकर डस लेता है! चेला सुंदरी पर मोहित हो जाता है वह गुरु से कहता है अगर आप सच्चे गुरु हैं तो सुंदरी को जीवित करके दिखाइए गुरु सोचते हैं शिष्यों को सद मार्ग पर लाने के लिए कभी.कभी चमत्कार करने पड़ते हैं!
वह अपनी आत्मा को सुंदरी के शरीर में रख देते हैं जिससे सुंदरी जीवित हो जाती है लेकिन उसका आचरण साधु की तरह होता है यमदूत पुनः आता है और बोलता है कि मुझसे गलती हो गई मुझे किसी दूसरी सुंदरी के प्राण हरने थे परंतु वह देखता है की सुंदर ही तो जीवित है और उसके शरीर में साधु उछल कूद कर रहे हैं इसलिए वह थोड़ी देर के लिए साधु के शरीर में सुंदरी की आत्मा का प्रवेश करा देते हैं जिससे साधु का व्यवहार सुंदरी की तरह हो जाता है संपूर्ण नाटक में विशुद्ध हास्य रस उत्पन्न होता है दोनों का आचरण एक दूसरे के विपरीत होता है साधु सुंदरी की तरह व्यवहार करता है जबकि सुंदरी साधु की तरह अंत में यमदूत आकर सब ठीक कर देता है और नाटक समाप्त हो जाता है नाटक के अंत में भरतवाक्य है जिसमें कलाकारों द्वारा बुंदेली गीत के माध्यम से बुंदेलखंड का यशो गायन किया गया है!